Apple पर अपने कर्मचारियों की “प्रिजन यार्ड” जैसी निगरानी करने का गंभीर आरोप लगा है। एक हालिया मुकदमे में दावा किया गया है कि कंपनी अपनी पॉलिसीस के पालन को सुनिश्चित करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर कर्मचारियों की एक्टिविटीज पर कड़ी नजर रख रही है। ऐसे में यह आरोप एम्प्लॉई प्राइवेसी और वर्कप्लेस सेफ्टी के बीच संतुलन पर गंभीर सवाल उठाते हैं, आइए जानते है क्या है ये पूरा मामला-

Apple पर क्या लगे है आरोप?
आक्रामक निगरानी
आपको बता दें की Apple पर कर्मचारियों के घरों सहित शारीरिक, वीडियो और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी का आरोप है। इतना ही नहीं, कंपनी कथित तौर पर बिजनेस उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले iPhones और iPads जैसे व्यक्तिगत उपकरणों की भी निगरानी करती है।
अनिवार्य एप्पल इकोसिस्टम
कर्मचारी पूरी तरह से Apple के डिवाइस पर निर्भर हैं, जिन्हें उन्हें काम के लिए इस्तेमाल करना पड़ता है, और इसके बदले कंपनी को इन उपकरणों पर उनका व्यक्तिगत डेटा-जैसे ईमेल, फ़ोटो और नोट्स आदि एक्सेस करने की पूरी छूट मिल जाती है।
खुलकर बोलने पर रोक
Apple कथित तौर पर अपने कर्मचारियों को काम की शर्तों या वेतन के बारे में बात करने से रोकता है। एक कर्मचारी ने यह बताया कि उन्हें अपनी डेजिग्नेशन पर पॉडकास्ट में बोलने से मना कर दिया गया, और यहां तक कि अपनी लिंक्डइन प्रोफ़ाइल में कुछ जानकारी बदलने के लिए भी कहा गया था।
नवाचार और नैतिकता के बीच संतुलन
बताते चलें की Apple पर चल रहा यह मुकदमा टेक सेक्टर में कर्मचारियों की प्राइवेसी के बारे में चल रही बहस को उजागर करता है-
कार्य-जीवन संतुलन पर प्रभाव
एम्प्लाइज को पर्सनल डिवाइस का उपयोग करने की आवश्यकता, काम और निजी जीवन के बीच स्पष्ट सीमाओं को मिटा देती है, जिससे एम्प्लायर को कर्मचारियों का गोपनीय व्यक्तिगत डेटा मिल सकता है।
स्वतंत्रता पर पाबंदी
कॉर्पोरेट नियंत्रणों के बारे में चिंता बढ़ रही है जो कर्मचारियों को अपनी राय व्यक्त करने से रोकते हैं। इतना ही नहीं, इसके चलते वर्किंग एनवायरनमेंट में खुलापन और स्वतंत्रता भी कम हो जाती है।
एथिकल वर्कप्लेस प्रैक्टिस
इसके अतिरिक्त, टेक कंपनी पर अब वर्कर्स के राइट्स और मॉरल वैल्यूज का सम्मान करते हुए लगातार इनोवेशन करने का दबाव है। लेकिन वे अक्सर दोनों के बीच संतुलन बनाने में असमर्थ दिखते हैं, खासकर जब आर्थिक विकास का प्रेशर बढ़ रहा है।
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SUMMARY
एप्पल के खिलाफ यह मुकदमा यह दिखाता है कि तकनीकी कंपनियों को अपने कामकाजी सिस्टम को प्रभावी बनाए रखते हुए कर्मचारियों की प्राइवेसी की रक्षा करने में कितनी मुश्किलें आती हैं। अब कामकाजी जगह पर निगरानी एक आम बात बन गई है, लेकिन अब कंपनियों को यह समझना होगा कि सुरक्षा और कर्मचारियों के व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।
