हाल ही में GST अधिकारियों ने BillDesk और CCAvenue जैसे बड़े पेमेंट एग्रीगेटर्स (Payment Aggregators) को 2,000 रुपये से कम के डिजिटल लेनदेन पर टैक्स की मांग की है। हालांकि 2016 में नोटबंदी के दौरान सरकारी नोटिफिकेशन के बाद, इन कंपनियों ने ऐसे भुगतानों को करने के लिए व्यापारियों से कोई शुल्क नहीं लिया था। ऐसे में अब GSTअधिकारी 2017 में GST लागू होने से पहले टैक्स भुगतान की मांग कर रहे हैं।

क्या है GST विवाद का पूरा मुद्दा?
भारत के 80% से अधिक डिजिटल पेमेंट्स 2,000 रुपये से कम हैं। साल 2016 में डिमोनेटाइजेशन के दौरान एक सरकारी नोटिस के अनुसार, पेमेंट एग्रीगेटर्स इन छोटे लेनदेन पर व्यापारियों से GST चार्ज नहीं करते थे। हालांकि, यह छूट 2,000 रुपये से कम के लेनदेन के लिए डेबिट और क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने वाले बैंकों पर लागू थी और उन्हें टैक्स का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं थी। जैसा कि इसकी व्याख्या (clause) में कहा गया है।
वही 2017 में GST Regime की शुरुआत के बाद पेमेंट एग्रीगेटर्स को इस छूट को जारी रखने के लिए कोई स्पष्ट उपाय नहीं था। इसके बावजूद, इंडस्ट्री ने इन छोटे-छोटे भुगतानों पर GST नहीं लगाया था। वर्तमान में, GST अधिकारियों ने 2017–2018 के लिए अनुमानित टैक्स की मांग की है, जिसकी राशि अरबों रुपए हो सकती हैं।
पेमेंट एग्रीगेटर्स के लिए बड़ी चुनौती
CCAvenue और अन्य पेमेंट एग्रीगेटर्स ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने समय के नियमों का पालन करते हुए GST नहीं लगाया था। अब अगर उन्हें पूर्वव्यापी कर चुकाने के लिए कहा जाता है, तो उन्हें व्यापारियों से पिछले वर्षों के लेन-देन के लिए GST वसूलना होगा, जो एक बड़ी चुनौती होगी। इसका असर छोटे व्यापारियों की वित्तीय स्थिरता पर पड़ सकता है।
यह GST केवल डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और नेट बैंकिंग लेन-देन पर ही लागू होता है, जबकि UPI और RuPay डेबिट कार्ड से जुड़ें पेमेंट इससे बाहर हैं। पेमेंट्स काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन विश्वास पटेल ने इस कदम से डिजिटल भुगतान को बाधित होने की आशंका जताई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में 9 सितंबर 2024 को हुई बैठक के दौरान फिलहाल इस मामले को फिटमेंट कमेटी के पास भेज दिया गया है।
