केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में बैंकों को बड़ा झटका दिया है। दरअसल हाल ही में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बैंक किसी भी कर्जदार को कर्ज चुकाने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से उनकी तस्वीरें या उनसे जुड़ी कोई भी डिटेल्स सार्वजनिक नहीं कर सकते है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा करना उनकी निजता और प्रतिष्ठा के अधिकार का उल्लंघन है। यह फैसला एक स्पष्ट संदेश देता है कि ऋण वसूली में अधिकारों का सम्मान करना आवश्यक है और किसी भी स्थिति में प्राइवेसी भंग नहीं की जानी चाहिए।

आइए जानते है क्या है यह पूरा मामला और केरल हाई कोर्ट ने किस केस के तहत यह अहम फैसला लिया है-
क्या है केस का बैकग्राउंड?
बता दें की यह पूरा मामला तब सामने आया जब चेम्पाजंती कृषि सुधार सहकारी समिति (Chempazhanthi Agricultural Improvement Co-operative Society) ने सहकारी समितियों के उप रजिस्ट्रार के आदेश को अदालत में चुनौती देने का महत्वपूर्ण कदम उठाया। आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि समिति के मुख्यालय में लगाए गए फ्लेक्स बोर्ड, जिन पर डिफॉल्टरों की तस्वीरें और नाम प्रदर्शित किए गए थे, उन्हें तुरंत हटा दिए जाएं।
बैंक का तर्क –
इस पुरे मामले पर बैंक ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उन्होंने बार-बार पुनर्भुगतान की अपील की थी और पिछले प्रयासों में सफलता के बाद इस पद्धति को अपनाया। इतना ही नहीं उन्होंने इसे केरल सहकारी समिति नियम, 1969 के नियम 81 के तहत अनुमत “टॉम-टॉम की बीट” की प्रथा से तुलना की।
कोर्ट का निर्णय–
केरल हाई कोर्ट ने बैंक द्वारा प्रस्तुत किए गए इस पूरे मामले पर विचार करते हुए, एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। अदालत ने बैंक की तुलना को खारिज कर दिया और टॉम-टॉमिंग को एक पुरानी अप्रासंगिक पद्धति के रूप में परिभाषित किया। कोर्ट का मानना था कि यह तरीका अब समय के साथ पुराना हो चुका है और इसे अब कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए।
केस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण फैक्ट्स
राइट्स का उल्लंघन
उधारकर्ताओं को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा कर उन्हें मजबूर करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जो किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं हो सकता।
सुरक्षा उपाय
ऋण वसूली को हमेशा कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं के तहत किया जाना चाहिए, बिना किसी ऐसे उपाय का सहारा लिए जो व्यक्तिगत गरिमा और सम्मान को ठेस पहुंचाते हों।
केस से जुड़ी डिटेल्स
केस संख्या
WP(C) 45919 of 2024
केस टाइटल
चेम्पाजंथी कृषि सुधार सहकारी समिति की प्रबंधन समिति और अन्य बनाम सहकारी समितियों के सब रजिस्ट्रार
साइटेशन
2024 लाइवलॉ (Ker) 823
याचिकाकर्ता के वकील
वकील पी. एन. मोहनन, सी. पी. सबरी, अमृता सुरेश, गिलरॉय रोजारियो
प्रतिवादी के वकील
अधिवक्ता रेस्मी थॉमस
यह निर्णय इस बात को स्पष्ट करता है कि लोन रिकवरी के समय कांस्टीट्यूशनल राइट्स का सम्मान करना अनिवार्य है। बैंक के नजरिए से इस प्रकार सार्वजनिक शर्मिंदा करना या प्राइवेसी का उल्लंघन करना, भले ही प्रभावी हो सकता है। लेकिन यह किसी व्यक्ति की गरिमा को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। ऐसे में बैंकों और बाकी सभी फाइनेंशियल इंस्टीटूशन्स को उचित रिकवरी प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए।
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SUMMARY
केरल हाई कोर्ट का निर्णय ऋण वसूली के दौरान अधिकारों का सम्मान करने का महत्वपूर्ण संदेश देता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की निजता और गरिमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, भले ही यह प्रक्रिया कितनी भी अधिक प्रभावी क्यों न हो। बैंकों और वित्तीय संस्थानों से कानूनी वसूली की उचित प्रक्रिया का पालन करना निश्चित तौर पर ज़रूरी है।
