कर्नाटक राज्य शिक्षा नीति आयोग (State Education Policy Commission) ने स्कूलों में भाषा को लेकर महत्वपूर्ण बदलाव करने का सुझाव दिया है। आयोग ने कहा है कि अब बच्चों को तीन की जगह दो भाषाएं ही सिखाई जाएं। इसके लिए मौजूदा त्रि-भाषा फार्मूले को हटाने की बात कही गई है। नई नीति के तहत दो-भाषा मॉडल लागू करने का सुझाव दिया गया है। आयोग का मानना है कि इससे बच्चों पर पढ़ाई का बोझ कम होगा। साथ ही बच्चे उन्हीं भाषाओं में अच्छा परफॉर्म कर पाएंगे।

पहली कक्षा से अंग्रेज़ी सीखना हुआ अनिवार्य
13 जून 2011 से नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत हुई। हैदराबाद के पास एक सरकारी प्राथमिक स्कूल में बच्चे कतार में खड़े थे। हर बच्चे के हाथ में स्लेट थी। स्लेट पर अंग्रेज़ी के अक्षर लिखे हुए थे। इसी दिन से एक नए बदलाव की शुरुआत हुई। जिसके बाद आंध्र प्रदेश सरकार ने पहली कक्षा से अंग्रेज़ी को दूसरी भाषा के रूप में लागू कर दिया। बता दें की यह फैसला 2011-2012 के ऐकडेमिक ईयर से शुरू हुआ।
लेकिन, इस बदलाव के साथ एक चुनौती भी आई। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (National Knowledge Commission) ने अनुसार देश की केवल एक परसेंट पापुलेशन ही अंग्रेज़ी को दूसरी भाषा के तौर पर अपनाती है।
क्यों लागू किया जा रहा है द्वि-भाषा मॉडल?
अभी स्कूलों में बच्चे तीन भाषाएं सीखते हैं। कन्नड़, अंग्रेज़ी और तीसरी भाषा, जो अक्सर हिंदी या कोई विदेशी भाषा होती है। यह बच्चों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है। कई बार वे इन सभी भाषाओं में अच्छा पकड़ नहीं बना पाते। इस वजह से, आयोग ने बदलाव का सुझाव दिया है। उनका मानना है कि द्वि-भाषा मॉडल अपनाने से पढ़ाई आसान हो जाएगी। स्कूल का पाठ्यक्रम सरल होगा और बच्चे बेहतर तरीके से सीख पाएंगे।
स्कूल और पेरेंट्स में बढ़ी असमंजस की स्थिति
कर्नाटक स्टेट एजुकेशन पॉलिसी के इस सुझाव ने बहस शुरू कर दी है। पढ़ाई में तीसरी भाषा हटाने से कई लोग परेशान हैं। प्राइवेट स्कूल, शिक्षक और अभिभावक इसे सही नहीं मानते हैं। उनका डर है कि इससे बच्चों को विदेशी भाषाएं सीखने का मौका नहीं मिलेगा। विदेश में पढ़ाई और नौकरी के अवसर भी कम हो सकते हैं।
वही कुछ क्रिटिक्स कहते हैं कि कई लैंग्वेज सीखने से दिमाग तेज होता है। कई सारे कल्चर को समझने में मदद मिलती है। आजकल के दौर में यह एक जरूरी स्किल हैं।
आयोग का जवाब और आगे की योजना
आयोग इन चिंताओं को स्वीकार करता है। लेकिन उन्होंने बताया है कि टू-लैंग्वेज अप्रोच (two-language approach) से पढ़ाई में सुधार होगा। कन्नड़ और अंग्रेज़ी दोनों पर ध्यान देकर यह मॉडल क्षेत्रीय भाषा और वैश्विक भाषा के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है। हालांकि कुछ लोगों के विरोध के चलते सरकार पर दबाव है। ऐसे में सरकार इस मॉडल को लागू करने से पहले अच्छे से विचार-विमर्श करेगी।
देखा जाए तो यह मॉडल तीन बड़ी चुनौतियां सामने लाता है। पहला, क्वालिटी एजुकेशन। दूसरा, भाषा और संस्कृति की विविधता। तीसरा, दुनिया में मुकाबला करने की ताकत। ऐसे में अंत में जो भी फैसला होगा, वह तय करेगा कि कर्नाटक के बच्चे अपनी भाषा और संस्कृति के साथ-साथ कैसे दुनियाभर के नए मौके हासिल करेंगे।
Summary:
कर्नाटक राज्य शिक्षा नीति आयोग ने स्कूलों में त्रि-भाषा फार्मूले की जगह द्वि-भाषा मॉडल लागू करने का सुझाव दिया है। इसका उद्देश्य पढ़ाई का बोझ कम करना और भाषा सीखना के प्रोसेस को आसान और प्रभावी बनाना है। हालांकि, अभिभावकों और स्कूलों को चिंता है कि इससे बच्चों को विदेशी भाषाएं सीखने के मौके कम हो सकते हैं। सरकार फिलहाल इस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श कर रही है।
