हाल ही में कर्मचारी अधिकारों को लेकर एक अहम फैसला सामने आया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने विप्रो के पूर्व कर्मचारी अभिजीत मिश्रा के पक्ष में फैसला सुनाया है। मिश्रा को एक पत्र लिखकर नौकरी से निकाला गया था। इस पत्र में उनके प्रोफेशनल व्यवहार पर सवाल उठाए गए थे।

इसमें ‘दुर्भावनापूर्ण आचरण’ (malicious conduct) और ‘विश्वास की पूर्ण हानि’ (complete loss of trust) जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने इन टिप्पणियों को डिफेमेटरी और निराधार बताया। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की भाषा कर्मचारी के भविष्य के करियर को नुकसान पहुंचा सकती है।
मानहानि पर मुआवज़ा, नया लेटर जारी करने का आदेश
इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने अभिजीत मिश्रा को राहत दी है। कोर्ट ने कंपनी को ₹2 लाख मुआवज़ा देने का आदेश दिया है। यह राशि मिश्रा की प्रतिष्ठा को नुकसान और मानसिक पीड़ा पहुंचाने के लिए दी जाएगी।
इसके साथ ही, कोर्ट ने Wipro को नया टर्मिनेशन लेटर जारी करने को कहा है। नए लेटर में किसी भी तरह की अपमानजनक और आहत करने वाली भाषा नहीं होनी चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि पहले वाला पत्र अब मान्य नहीं होगा।
गलत छवि पेश की, तो देना होगा जवाब – HC
दिल्ली हाई कोर्ट ने अमेरिकी कानून का हवाला दिया। इस सिद्धांत के मुताबिक, अगर कोई कर्मचारी मजबूर हो कि वह खुद अपनी बदनामी की बात बताए। उदहारण के लिए किसी इंटरव्यू में नौकरी छूटने की वजह बताना पड़े, तो इसके लिए कंपनी जिम्मेदार होगी। कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी को ऐसी स्थिति में डालना गलत है।
HC ने साफ कहा है कि जब किसी लेटर की भाषा कर्मचारी के करियर को नुकसान पहुंचाए, तो प्राइवेसी का तर्क नहीं चलेगा। Wipro भी आंतरिक दस्तावेज़ों के पीछे छिप नहीं सकता। यह फैसला कर्मचारियों के सम्मान और अधिकारों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण कदम है।
झूठी टिप्पणियों को कोर्ट ने बताया करियर के लिए खतरा
दिल्ली हाई कोर्ट ने टर्मिनेशन लेटर में इस्तेमाल की गई अपमानजनक भाषा और मिश्रा के अच्छे काम के रिकॉर्ड के बीच बड़ा फर्क बताया। अदालत ने कहा कि बिना ठोस सबूत ऐसे आरोप लगाना गलत है। कोर्ट ने साफ किया कि किसी की प्रोफेशनल इमेज को नुकसान पहुंचाना गलत है।
मील का पत्थर साबित होगा ये फैसला
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कंपनियों को टर्मिनेशन के डाक्यूमेंट्स तैयार करते समय ध्यान रखना चाहिए। बिना वजह आरोप लगाना सही नहीं होगा। खासकर जब यह बातें तीसरे पक्ष या नए एम्प्लॉयर के साथ शेयर किए जाएं। ऐसे मामलों में मानहानि का केस हो सकता है। यह फैसला कर्मचारियों के हक़ और सम्मान की रक्षा में एक बड़ा कदम है।
यह फैसला रोजगार में सम्मान का अधिकार मजबूत करता है। कोर्ट ने कंपनियों को साफ संदेश दिया है। कर्मचारियों का टर्मिनेशन निष्पक्ष और सही होनी चाहिए। टर्मिनेशन के डाक्यूमेंट्स में कोई अपमानजनक बात नहीं होनी चाहिए।
Summary:
दिल्ली हाई कोर्ट ने विप्रो के पूर्व कर्मचारी अभिजीत मिश्रा के पक्ष में अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने उनके टर्मिनेशन लेटर की अपमानजनक और निराधार भाषा को डिफेमेटरी बताया। मिश्रा को ₹2 लाख मुआवजा और नया टर्मिनेशन लेटर जारी करने का आदेश दिया गया। कोर्ट ने कहा कि कंपनियों को टर्मिनेशन डाक्यूमेंट्स सावधानी से बनाना चाहिए। यह फैसला कर्मचारियों के अधिकार और सम्मान की रक्षा में मील का पत्थर साबित होगा।
