हाल ही में सोशल मीडिया और पॉपुलर सर्च इंजनों पर “Boycott USA” आंदोलन तेज़ी से फैलता हुआ नजर आ रहा है। इस आंदोलन के तहत, यूजर्स अमेरिका में निर्मित प्रोडक्ट्स और ब्रांड्स से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं। यह विरोध विशेष रूप से उस समय बढ़ा, जब स्कॉटलैंड और आयरलैंड में ट्रम्प के गोल्फ कोर्सेस पर भारी टैरिफ लगाने की घोषणा की गई । इसके साथ ही कई अन्य पॉलिसी को लेकर भी विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है।

Boycott USA आंदोलन की हुई शुरुआत
दरअसल कनाडा में ट्रंप द्वारा सत्ता हथियाने की धमकी देने के बाद, कनाडाई कस्टमर्स ने USA प्रोडक्ट्स से दूरी बनानी शुरू कर दिया है। टेस्ला टेक-डाउन कैंपेन के तहत, एलन मस्क और उनके ब्रांड टेस्ला को भी विरोध का सामना करना पड़ा। इस दौरान यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में टेस्ला शोरूम पर कारों को आग लगाने की घटनाएं भी सामने आई। जिसमें अमेरिकी ब्रांड्स के प्रति स्पष्ट रूप से आक्रोश देखा गया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखा विरोध का असर
इस विरोध का असर अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देखने को मिल रहा है। बता दें की USA की प्रोडक्ट्स की पहचान करने के लिए बहुत से तरीके अपनाएं जा रहे हैं। जहां एक ओर डेनमार्क में एक सैलिंग ग्रुप यूरोपीय प्रोडक्ट्स पर ब्लैक स्टार का निशान लगाकर उपभोक्ताओं को गैर-यू.एस. वस्तुओं की पहचान करने में सहायता कर रहे है।
तो वहीं, कनाडा में लोग अब मेपल स्कैन ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि वे यह जान सकें कि कौन से प्रोडक्ट US के हैं और कौन से कनाडा के। इसके चलते, वे शेल्व पर इन प्रोडक्ट्स को पलट-पलट कर देख रहे हैं ताकि अपने शॉपिंग के समय सावधानी बरत सकें।
कनाडा, डेनमार्क में नॉन US ऑप्शंस की बढ़ती जागरूकता
जहां बॉयकॉट आंदोलन अपने विरोध के लिए अमेरिकी फेसबुक प्लेटफॉर्म का सहारा लेता है, वही कनाडा और डेनमार्क में फेसबुक ग्रुप्स नॉन-यूएस विकल्पों के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद कर रहे हैं। इतना ही नहीं, ग्लोबल रिटेल ट्रेड भी अमेरिकी तकनीक और पेमेंट सिस्टम्स पर काफी निर्भर है। भले ही लोग USA बेस्ड प्रोडक्ट्स से दूर रहने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन जब भी वीज़ा, मास्टरकार्ड, ऐप्पल पे या वर्ल्डपे जैसे सिस्टम से भुगतान किया जाता है, तो ये पेमेंट ऑप्शंस अमेरिकी कंपनियों को ही फायदा पहुंचाते हैं।
यह स्थिति बताती है कि अमेरिकी कंपनियां डेली लाइफस्टाइल में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे इनका पूरी तरह से बहिष्कार करना लगभग नामुमकिन हो जाता है। हालांकि कुछ अमेरिकी कंपनियां, जैसे बडवाइज़र, स्टारबक्स और कोका-कोला, अपनी देशभक्ति से भरी ब्रांडिंग की वजह से आसानी से टारगेट हो जाती हैं।
अंतरराष्ट्रीय विरोध से अमेरिकी कंपनियों को खतरा
इस बीच कस्टमर्स ओनरशिप स्ट्रक्चर को समझने की बजाय, सीधे तौर पर अमेरिकी ब्रांड्स से बचने पर ज्यादा फोकस कर सकते हैं। इसे “प्रॉक्सी बॉयकॉट” भी कहा जाता हैं, जिसमें किसी पर्टिकुलर बिजनेस को निशाना बनाने की बजाय एक राजनीतिक मुद्दा उठाना असल उद्देश्य होता है।
उदाहरण के तौर पर 1990 के दशक में न्यूक्लियर टेस्टिंग के बाद फ्रेंच वाइन का बहिष्कार किया गया। इसके बाद फ्रांस ने टेस्टिंग प्रोसेस बंद कर दिए, जिससे वाइन इंडस्ट्री को लाखों डॉलर का नुकसान हुआ।
यह उदाहरण दिखाता है कि कैसे बॉयकॉट का इस्तेमाल राजनीतिक फैसलों को बदलने के लिए किया जा सकता है। भले ही ट्रंप के कठोर ‘liberation day’ टैरिफ का उद्देश्य अमेरिकी ताकत को दर्शाना था। हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंस्यूमर्स का यह बढ़ता हुआ विरोध अमेरिकी कंपनियों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
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SUMMARY
हाल ही में ‘Boycott USA’ आंदोलन सोशल मीडिया पर फैल गया है, जिसमें कंस्यूमर्स अमेरिकी ब्रांड्स से बचने की अपील कर रहे हैं। यह विरोध खासकर ट्रंप के गोल्फ कोर्स पर टैरिफ लगाने के बाद बढ़ा है। कनाडा और डेनमार्क में लोग अब विशेष रूप से अमेरिकी प्रोडक्ट्स से बचने की कोशिश कर रहे हैं। उपभोक्ता अपनी खरीदारी शक्ति से राजनीतिक फैसलों को प्रभावित कर सकते हैं।
