बेंगलुरु और मैसूर के बीच हाई-स्पीड रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम (RRTS) का काम शुरू हो चुका है। यह प्रोजेक्ट राज्य के सबसे व्यस्त ट्रैवल रूट को नया रूप दे सकता है। यह प्रोजेक्ट दिल्ली-एनसीआर के नमो भारत RRTS मॉडल (Namo Bharat RRTS) को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जा रहा है। खास बात यह है कि इस महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट से सफर का समय तीन घंटे से घटकर 70 मिनट से भी कम हो सकता है।

बेंगलुरु से मैसूर तक, अब सफर होगा सुपरफास्ट
इस रैपिड रेल परियोजना का प्रस्ताव बैंगलोर कम्यूटर रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BCRCL) ने तैयार किया है। वही प्रोजेक्ट की डिजाइनिंग का जिम्मा नेशनल कैपिटल रीजन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (NCRTC) को सौंपा गया है। दोनों एजेंसियां मिलकर इस हाई-स्पीड रेल नेटवर्क को वास्तविक रूप देने में जुटी हैं।
इस रैपिड रेल परियोजना का मुख्य उद्देश्य है यात्रियों को तेज़ और सुविधाजनक सफर देना। इसके तहत ट्रेनें 200 km प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ेंगी। इससे खास तौर पर उन लोगों को राहत मिलेगी, जो रोज़ाना बेंगलुरु और मैसूर के बीच सफर करते हैं। यह बिजनेस से जुड़े लोगों के लिए भी बेहद उपयोगी साबित होगी।
हाइ-स्पीड रेल को मिली रफ्तार, DPR की प्रक्रिया शुरू
बेंगलुरु-मैसूर रैपिड रेल प्रोजेक्ट की फिज़िबिलिटी स्टडी पूरी हो चुकी है। अब डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की जा रही है। इसमें ट्रेन की तकनीक और लागत का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया जा रहा है। योजना में एक हाइब्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर मॉडल शामिल है। इसके तहत एडवांस ट्रैक सिस्टम और एलिवेटेड कॉरिडोर बनाए जाएंगे। इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत ₹25,000 से ₹30,000 करोड़ के बीच हो सकती है।
बेंगलुरू-मैसूरु सेक्शन बनेगा विकास का नया हब
बेंगलुरू-मैसूरु सेक्शन तेजी से एक उभरते हुए डेवलपमेंट कॉरिडोर के रूप में सामने आ रहा है। यह रूट अब केवल कनेक्टिविटी तक सीमित नहीं है। यह आर्थिक गतिविधियों का भी प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) से कई महत्वपूर्ण लाभ मिलने की उम्मीद है, जैसे कि:
- रियल एस्टेट और कमर्शियल डेवलपमेंट
- ट्रैफिक में कमी और पॉल्युशन कंट्रोल
- सड़क दुर्घटनाओं में संभावित गिरावट
- यात्रियों के लिए बेहतर सुविधा और समय की बचत
- टियर-2 शहरों के लिए बेहतर कनेक्टिविटी
प्रोजेक्ट के बावजूद चुनौतियां बरकरार
भले ही प्रोजेक्ट को लेकर अभी भी उम्मीदें बनी हुई हैं। लेकिन कुछ बड़ी चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं। जैसे:
- कई जिलों में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया धीमी चल रही है।
- सरकारी एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी है।
- प्रोजेक्ट की वित्तीय स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं।
- ऐसे में हाइब्रिड ट्रैफिक से बचने के लिए कॉरिडोर की जरूरत है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब तक सिस्टम को धीमी रेल नेटवर्क से अलग नहीं किया जाएगा, तब तक इसकी स्पीड और एफिशिएंसी में सुधार नहीं हो पाएगा।
कर्नाटक मोबिलिटी के लिए एक गेम-चेंजर
देखा जाए अगर यह योजना सफलतापूर्वक लागू हो जाती है, तो RRTS कर्नाटक में शहरी आवागमन में बड़ा बदलाव ला सकता है। चाहे रोज़ाना ऑफिस जाना हो, वीकेंड ट्रिप्स हों या शहरों के बीच सफर। यह कदम कर्नाटक की मोबिलिटी को एक नई दिशा देगा। साथ ही, यात्रियों के अनुभव को भी बेहतर बनाएगा।
Summary
बेंगलुरु और मैसूरु के बीच हाई-स्पीड रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम (RRTS) का काम शुरू हो चुका है। यह प्रोजेक्ट सफर का समय तीन घंटे से घटाकर 70 मिनट से भी कम कर सकता है। 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाली ट्रेनें रोजाना आवागमन को तेज और सुविधाजनक बनाएंगी। यह परियोजना कर्नाटक की मोबिलिटी में बड़ा बदलाव लेकर आएगी।
